बहुत लिखता हूँ में,
कुछ सुनने को,
इक नया किस्सा,
सबको बतलने को.
कभी ग़ज़ल
कभी शेर
लिखता हूँ में बहुत
दिन और सवेर
हर दिन इक नया साज़
हर दिन इक नया राग
इक नई उमंग, इक नई तरंग
रोज़ छेड़ता हूँ में इक नई तार
सहलाता हूँ में इक नया एहसास
पर आज दोबारा सब पड़ा
सोचा, सब राग बजें एक साथ
हर जरर्रा महेक उठे
हर एहसास चहेक उठे
मगर
सिर्फ़ एक ही राग मिला
एक ही साज़ मिला
हर ग़ज़ल में हर शेर में
हर राग में हर साज़ में
बस एक ,सिर्फ़ एक ही कहानी
सालों से बस एक ही किस्सा
बस एक ही कहानी
बस बदले अल्फ़ाज़
ना बदल पाया एहसास
मेरी बस एक ही कहानी
सिर्फ़ एक ही कहानी
~By Madhur Chadha
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